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अभेद अर्थात् कोई काले जूदा नहि पडे एम चित्तमां चिंतन करी धारणा करी ते सर्वे नयोने परमार्थ एटले शुद्ध द्रव्यस्वरूपमा समाव्या, तजन्य एक शुद्धास्मअनुभूनिने भोगववा लाग्या, नयोनी वर्तना रूप विकल्पनो नाश थयो उक्तंच-उपेंद्रवज्रा. य एव मुक्त्वा नय पक्षपातं, स्वरूप गुप्ता निवसन्ति नित्य विकल्पजाल च्युत शान्त. चित्ता, स्तएव साक्षादमृतं पिवन्ति ॥ ४॥ स्थावादी वस्तु कहीजे, तसुधर्म अनंत लहीजे रे ॥ मन० ॥ सामान्य विशेषतुं धाम, ते द्रव्यास्तिक परिणाम रे॥ मन०।५।
अर्थः-वस्तु अनंत धर्मात्मक छ अर्थात् अनंताधर्मो वस्तु समकाले होय . जेम स्वद्रव्यादि चतुष्टये वस्तु अस्ति स्वभाववत छे, पर द्रव्यादि चतुष्टये वस्तु नास्ति स्वभाववत छे. मज नित्य अनित्य, एक, अनेक, भेद, अभेद, भव्य, अभव्य, वक्तव्य प्रवक्तव्य, विगेरे स्वभाववंत वस्तु रोष के माटे जो तेमांथी स्वाभिष्ट एक स्वभाधने एकांते गवेषीये, निश्चय करीये तो वस्तुनुं ज्ञान यथार्थ थाय नहीं पप जो स्यात् अस्ति, स्यात् नित्य, स्यात्