________________
५१
चित्त वसाये, भाव रोग मिट जाये रे
॥ प्रभु० ॥ श्री० ॥ ७ ॥
:- पण हवे मने भय नथी कारण के जिन राजना वचन पसाये तत्त्व रसायणनी प्राप्ति थई छे तेथी माहरू चित्त प्रभुनी भक्तिमां वसवाथी भाव रोग मटी जशे. पण हवे हे तरण तारण श्री सुबाहु जिनेश्वर ! बत्रीश दोष रहित तथा वाणीना पांची गुण सहित परमामृत रूप आपना वचनोना पसाये ज्ञानावरणादि कर्म रोगने अत्यंत दूर करी आत्म वीर्यनी संपूर्ण वृद्धि पुष्टि करनार देवतत्व, गुरु तत्त्व, अने धर्मतत्त्वनी मने प्राप्ति थई छे तेथी माहरी चित्त वृत्ति मनोझ अमनोज्ञ पर द्रव्यथी निवृत्रा थई प्रभुनी आज्ञा पालवा रूप भक्तिमां लीन थेशे तेथी माहरा ज्ञानावरणादि सर्वे भाव रोगो सूर्यथी जेम अंधकार नष्ट थाय तेम तत्काल विनाप्रयासे नष्ट थई जशे एवा निश्चयथी मारो भव भ्रमणनो अत्यंत भय दूर थयो छे ॥ ७ ॥
*
जिनवर वचन अमृत अनुसरिये, तत्त्व रमण आदरिये रे ॥ प्र० ॥ द्रव्य भाव