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.. सम्यक तत्व जे उपदिश्योरे, सुणता, तत्त्व जणायरे ॥०॥ श्रद्धा ज्ञाने जे ग्रह्योरे, तेहि न कार्य करायरें ॥द०॥ श्री० ॥८॥.... ___अर्थ-द्रव्यना सर्व पर्यायना ज्ञान विनाना एकांत वादीयो ( मिथ्या वादीयो ) (एकांते होइ मिथ्थतो) ना विडवनारूप भव भ्रमणना हेतुभूत दुनयथी परिपूर्ण अज्ञान जन्य सिद्धांतथी उपजता अज्ञानरूप अंधकारना समूहनो नाश करनार सकलनय तथा प्रत्यक्ष परोक्ष प्रमाणथी अबाधित स्याद्वाद् युक्त, अव्याप्ति अतिव्याप्ति' ताथा असंभवादि सकल दूषणो रहित जीवादि तत्वोन सत्य स्वरूप प्रतिपादन करनार जिनेश्वरना परम कल्याणकारी वचनो श्रवण मनन निधिध्यासन करतां शंसय विपर्यय अने अनध्यवसाय रहित, तत्त्व स्वरूपनु सम्यक्ज्ञान थाय अने सम्यक्दर्शन सम्यक्ज्ञान युक्त जो आस्म स्वरूप जाणीयेग्रहण करीये तोज परमात्म सिद्धिना साधक वन शकीए ज्यांसुधी पास्मद्रव्यन सम्यज्ञान सम्यक दर्शन थयु नथी त्यांमुधी पादरेलु चारित्र ते सम्यक विशेषणने प्राप्त थइ शके नहि भने सभ्यक्चारित्र