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२६६ इम जंपे जिनराय रे, समता शिव सुख दाय रे समनिधि मुनि गुण गाय रे, सुरपति से तसु पाय रे ॥६॥ तीजे अगेरे उपदिस्यो, ए उपदेश उदार रे। जिण आणा ए वर्तस्यै, ते गुणनिधि निरधार रे ।। ज्ञानसुधा (जल) दिल धार रे, वरसै श्री गणधार २,
पामै तसु सुख सार रे॥१०॥ श्रा रयण सिंहासन वैसी नै, दाखे जगत दयाल रे। देवचन्द्र आणा रुचि, होइज्यो बाल गोपाल रे । आतम तत्त्व संभाल रे. करज्यो जिन पति वाल रे', थास्यो
परम निहाल रे ॥१॥
८ पद
राग धन्यासिरी मेर जीउ क्या मन मई तू चीतइ । इक आवत इक जात निरंतर, इण संसार अनंतइ ११ मेर जीउ । करम कठोर करे जीउ भारी, परत्रिय धन निरखंतह । जनम मरण दुख देखे बहुले, चगइ मांहि भमंते ।२। मे० । काम भोग क्रीड़ा मत करना, जे बांधे हरखते । वेर वेर तेहिज भोगवता, नवि छूटे विलवंतइ रे ।३। मे० । क्रोध कपट माया मद भूल इ, भूरि मिथ्याति भमतइ । कहै देवचंद्र सदा सुख दाई, जिन ध्रम एक एकंतइ ।४। मे० ।