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________________ T श्रीफलवधिपुर राया, जब तुम दरसण मई पायां दुख दोहग दूर गमाया, हि श्राद थया सवाया हो लाल |५| मइ योनि सहू अवगाही, तुम सेवा कबहि न साही ! हिव मइ तु आण आरोही, मुझ लीजइ बाह संभारी हो जान J 7 C जब तुझ मुख दरसण दी सइ, तब मुझ मन अधिक हीसई । गणि राजहंस सु सीसइ, कहे देवचंद सुजगीसइ हो लाल ॥७॥ इति श्री पार्श्वनाथ गीत ( स्वय लिखित पत्र २ ) प्रारंभ में दीपचंद कृत लोद्रवा पार्श्व जिन स्तवन गा० १२ पार्श्वस्तवन गां०८ राजहंस ( दीपचंद ) कृत उसके बाद उपर्युक्त स्तवन फिर चंदकृतः स्तवन है जो प्रारंभ मे जा चुका है ५ श्री मौनेकादशी नमस्कार तिहुण जण आणंद कंद्र, जय जिणवर सुखकर । सुन्दर || कल्याणक तिथि मांहि, जेह एगसिर सुदी एकादशी, वसी आराधो पोसह करी, ठो पामो सुख : नाहि ॥ ६१ ॥ परमोत्तम सुगुण मेन मांही । । t ↓ श्री अरजिन दीक्षा प्रधान, "नमि, केवल भासन | } मल्लिनाथ जनम, दीक्षा शुचि वासनं IIT केवल "ना" कल्याण, पंच श्री जबू भरते । इमा दश क्षेत्र - एक काल, जिन महिमा वरते ॥ २ ॥ " नातीत वर्तमान, कल्याणक सवति । - 1
SR No.010575
Book TitleViharman Jina Stavan Vishi Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJatanshreeji Maharaj, Vigyanshreeji
PublisherSukhsagar Suvarna Bhandar Bikaner
Publication Year1965
Total Pages345
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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