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___ अर्थ:-ते पछी आवश्यकोद्धार प्रमुख ग्रथना कर्ता सुविहित सामाचारी धारक श्रीराजसारजी महोपाध्याय थया, ते पछी न्यायादिक ग्रथ अध्यापक सूर्य समान तपस्वी ज्ञानधर्म उपाध्याय थया, ते पछी माहरा सद्गुरु ज्ञान दर्शन चारित्र गुणना धारक, पंचाचारना पालक, उपसर्ग परिसह सामे गजेंद्रनी पेठे निश्चल रहेवावाला महाधीर वीर दीपचंद्र पाठक थया।
देवचंद्र गणि आतम हैते, गाया वीश जिणंदो ॥ रिद्धि वद्धि सुख संपति प्रगटे सुजस महोदय वृदोरे ॥ जिन० ॥ ॥६॥ __ अर्म:-एमना शिष्य मैं देवचंद्र गणिए आत्म पदार्थने कर्म कलंकथी मुक्त करवाना हेतुए विहरमान वीश तीर्थकरना गुण गाया जेथी कर्म कलंक बडे आछादित थएली आत्मानी ज्ञानदश् नादि अनेक रिद्धिो प्रगटे, वृद्धिने पामे तथा तजन्य सुख संपत्ति प्रगट थाय, अखूट निर्मल यश विस्तरे, श्रात्मीय गुण समूहनो महोदय थाय, सर्वत्र कल्याण वर्ते, सर्व जीव परमानंद ने ग्राप्त थाय ॥ ६॥
॥ संपूर्ण ॥