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॥उँ नमः सिद्धेभ्यः॥ ॥ अथ श्री महोपाध्याय देवचंद्रजी विरचित विरहमान जिन स्तवनानि बालावबोध सहित ॥
॥ दोहरा ॥ जयति ज्योति शुद्धात्मनी, करति परम उद्योत; दूर करे सहु विघ्नभय, करे, अखिल सबोध. दुःखहर सुखकर सद्गुरु, "श्री मनसुख" मति पूर; - स्वपर समय ज्ञाता सदा, मम मति । करे सनूर.
(२) स्याद्वाद जिन वचनने वंडं धरि सन्मान , हृदय वदन राखुं सदा, सहज लहुं शुभ ध्यान, देवचंद्र मुनिवर रचित, स्तवन वीश भभिरामा
। (३)