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पाठछ धीर गवं दो ॥ जिन० ॥ देवचन्द्र गणि श्रातम हेते
गाया वीस जिणंदो xx
इस वीसी के भाषों को समझाने के लिये दाहोद के रहनेवाले श्रावक पडित मनसुखलालजी के शिष्य अं सतोष चदजी ने गुजराती अनुवाद किया है जो साथ ही छपा है। अनुवाद भी बड़े सुन्दर ढग से किया गया है ।
इस वीसी को पढ़ने पर अध्यात्म करत, जैन दर्शनानुरागी लोगों को भारी बोध लाभ प्राप्त होगा । श्रमदेव चन्द्रजी महाराज के साहित्य का विशिष्ट कारन अध्यात्म प्रसारक डज प दरा ने दिया है । ६छ अवश कृतियपरिशिष्ट रूप में इस बीसी के पृष्ट माग मे अबित है । इप्त पुस्तक का प्रकाशन करके भी प्रकार को में एक प्रकार से दशन की ही सेवा की है । इसी प्रकार दर्शन सेवा का लाम हमेशा समाज को मिलता रहे यही एक अभिलाषा रखता हुआ--
उपाध्याय कवीन्द्रसागर
बीकानेर ( राजस्थान)