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तल्लीनता करवी ते प्रीति अनुष्टान छे.
तथा श्री जिनेश्वरने परम करुणाना निधान, भवसागरमांधी भव्य जीवोने मुक्त करनार, धर्मधुरंधर, तीर्थना प्रवर्तक जाणी तेश्रोना गुणनु बहुमान करवू, अतिशय आदर विनय पूजा सेवना विगेरे करवां ते भक्तिश्रनुष्ठान छे.
बली लोकालोक प्रकाशक केवलज्ञानवडे सर्वे तत्त्वना यथार्थ वेत्ता तथा उपदेशक परम वीतराग प्राप्त श्री जिनेश्वरना वचननी यथार्थ श्रद्धा करवी तदनुसार हर्षयुक्त अाचरणमा प्रवर्तवू ते वचनातुष्ठान छे.
हे प्रभु ! ए त्रण अनुष्ठान जे भावयुक्त सेवन करे तेने सर्वे विभाविक क्रियाथी निवृत्ति तथा सहज प्रात्मीक परिणामीकतानी प्राप्ति क्षय असंग अनुष्ठान थाय.
• एम ए चार अनुष्टाननो कर्त्ता हे भगवंत ! श्राप स्वरुपने प्राप्त थाय. माटे हे प्रभु ! धापनी
भक्तिमां माहरं चित्त निरंतर लीन रहे एम भावना __ भाबु छ ॥३॥
परमेश्वर अवलंबनेरे ॥ मन० ॥ ध्याता ध्येय अभेदरे ॥भवि०॥ ध्येय समाप्ति हुवेरे॥