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अंतरंग बहु मन्मान ( विनय ) युक्त आपने • विनंती करूं छं के जो आप माहरा ऊपरं कृश करो, मने सम्यक् चारित्रमां जोहो तो हुं ते चारित्र रुप पांख वडे श्री देवजसा प्रभुनी समीप जई, शकुं, ते प्रभुना प्रत्यक्ष दर्शननो मने लाभ मले ॥ ४ ॥ पूछें पूर्व विराधना, शो कीधी ईणे जीव लाल रे || अविति मोह टले : नहीं, दीठे आगम दीव लाल रे ॥ देवेजसा० ॥ ५ ॥
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अर्थ :- हे प्रभु! म माहरा जीने पूर्वे आत्म घर्मनी केवा तीव्र विराधना करो छे के श्रात्म अनात्मनुं स्वरुप यथार्थ प्रकाश करनार जिनागमरूप दीपकनी प्राप्ति थयां छता पण पंचेंद्रियना विषय जे पुद्गल परिणाम ते ऊपर रागकूप अविरति तथा स्वपर जीवना - द्रव्यभाव प्राण हणव रूप हिंसा, तथा क्रोधादिक कषाय निगेरे, आत्म भावने अत्यत प्रशस्त तथा दुःखदायक परिणाम हजुसुधी, टलना नथी ॥ ५ ॥ ॥
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आतंम शुद्ध स्वभावनें, बोधन शोधन कार्ज
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लॉल ॥ रत्नत्रयी प्राप्तितणो, हेतु कहो
TE F महाराज लाळ र॥ देवजसा० ॥ ६ ॥ १.
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