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२३३ पण अनंत ज्ञान दर्शन आदि अत्यंत अभ्यंतर विभूति युक्त प्रापना लोकालोक प्रकाशक अनंत प्रकाश युक्त महान् तेजस्वी स्वरूपने निरंतर निरख्यां करत पण ते बने शक्तिशोथी हुं रहित छु तो आपन दर्शन केम पासु ? ॥ ३ ॥ ।
शासन भक्त जे सुरवरा, विनवूशीष नमाय लालरे ॥ कृपा करो मुज ऊपरे, तो जिन्न वंदन लालरे ॥ देवजसा० ॥ ४॥
अर्थ:-ऊपर प्रमाणे माहरामां देवजसा प्रलुर्नु दर्शन पामवानी शक्ति नहि होवाथी जिनशासनना भक्त हे महान् देवो ! हुं आपनी सहाय चाहुं छु, मस्तक नमावी विनति करूं बुं के जो श्राप माहरा ऊपर कृपा करी जो अपना सामर्थ्य वडे देवजसा प्रभु पासे मने लेई जाऊं तो ते प्रभुनां दर्शन वंदननो मने लाभ मले .
प्रकारांतरे-ऊपर प्रमाणे सस्यश्चारिम्ररुप पांखो अथवा केवल दर्शनरुप माखो मने नहीं होवाथी देग्जमा प्रभुन दर्शन वंदन प्राप्त करवामां जिन शासन अर्थात् जिनेश्वरन माज्ञानुं पालन करनारा तथा वीजाने तेमा जोडनारा हे सूरपरा अर्थात् महान् भाचार्यो हुं मापने मस्तक नमावी