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२१६ आज हो ध्याय के नायकने ध्येय पदे ग्रह्योजी ॥५॥
अर्थ:-नपुंसक वेद, स्त्रीवेद, अने पुरुषवेद ए व्रणे वेदनो नवमे गुणस्थाने तथा सर्वे कषायनो दशमा गुणस्थानना अंतसुधीमा समूल क्षय करी दीधो छ, तेथी हे भगवंत ! श्राप वेद तथा कषाय रहित छो; तथा “खय परिणामे सिद्धा” ए सूत्र प्रमाणे श्रापमा क्षायिक अने परिणामिक ए बे भावज वत्त छे, सकल कर्मनो क्षय करी क्षायिकभाव पोतानु शुद्धात्म स्वरुप संपूर्ण सिद्ध प्रगट कयु छे. अनंतज्ञान, दर्शन, चारित्रना स्वामी दया छो. अने पारिणामिक भाववडे अनंतकालसुधी. आपना ज्ञानादि गुणो असहायपणे निरंतर परिणमशे. कोइपण काले कोइपण प्रापना ज्ञानादि परिणामने स्खलना करी शकशे नहि माटे हे भगवंत ! श्राप सादिअनंतकाल सुधी शुद्ध सिद्ध तथा असहाय छो. - उपर वर्णवेला गुणो सहित शुद्ध सिद्ध तथा असहाय श्राप भगवंतने अवलोकी श्राप समान सिद्धपदनो कामी हुं सेवक ध्याता, श्राप त्रिलोकपूज्य भगवंतने ध्येयपदे स्था' छु, आपना पदनु ध्यान करुं छु.॥५॥... .. ...