________________
२०४
संपूर्ण वीतरागता प्राप्त थइ नथी, रत्नत्रयनी अपूर्णता छे त्यांसुधी सरागता वर्ते छे; ते सरागता-शुभेपयोगवडे कर्मास्त्रव थाय छे. जेम घृतमा बालवानो स्वभाव नथी परंतु घी साथे रहेली अग्निथी बलतां धीथी बल्यो एम बोलाय छे. तेम रत्नत्रयथी तो कर्मबंध थतो नथी तथापि ते रस्नत्रय साथ वर्तता शुभोपयोग (सरागता ) वडे बंध थाय छे. माटे चोथा गुणस्थानथी मांडी संपूर्ण वीतराग गुणस्थान सुधी जे जे अंशे रत्नत्रय होय छे ते ते अंशे बंध नथी जेटला अंशे राग वर्ते छे तेटला अंशे बंध थाय छ. ___ एम शुद्धोपयोगथी चूकी अशुद्धोपयोगमा वर्ततां मोक्षमार्गरूप संवर तथा निर्जरा 'तत्वनो अनादर को.
संवर-" कर्मास्रव निरोध समर्थ स्व संवित्ति परिणत जीवस्य शुभाशुभकर्मागमन संवरणं संवरः” शुभाशुभ कर्मास्रवनो निरोध ते संवर छे. ते संवरना हेतु समिति, गुप्ति, परिसहजय, जतिधर्म, भावना तथा चरित्र छे. .
निर्जरा-"शुद्धोपयोग भावना सामर्थ्येन