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१६५ आपनी देशनानो यथार्थ रहस्य पामी पोताना शुद्धास्म पदना साधकपणे शुद्धात्म अनुभव योगे ज्ञानशुद्धि तथा क्रियाशुद्धि श्राद्रे "ज्ञानशुद्धि"संशय विभ्रम अने बिमोह रहित शुद्ध तत्त्वनुं जाणवू ते शुद्धज्ञान छे. ते शुद्धज्ञान सर्व दोषथी रहित केवलज्ञानदिवाकर श्री अरिहंतादिना सदुपदेशद्वारा तथा तेउनीप्ररुपेला सदागमद्वारा वाचना, प्रिच्छना, पर्यटना, अनुपेक्षा तथा धर्मकथा विगेरे साचा निमित्तथी शुद्धज्ञाननी प्राप्ति थाय छे माटे तेउनु अतिचार रहित निरंतर सेवन करवू जेथी ज्ञानशुद्धि थाय. " क्रियाशुद्धि”-क्रिया बे प्रकारेछे. बाह्यक्रिया अने अंतरंग क्रिया-शुद्धा हारादिकनुं ग्रहण करवु तथा तथा इयो भाषादि समितिनुं पालन करवु विगेरे बाह्य क्रियाशुद्धि छे. तथा स्वसमय परसमय, स्वद्रव्यं परद्रव्यने भिन्न भिन्न यथार्थ जाणवामां वर्तवु तथा शुद्धात्म स्वरुपनो घात करनार क्रोधादिक कषायोनो भेद विज्ञान रूप तीक्षण बाणवडे नाश करवो, तेश्रोनो भात्म सत्ताभृमिमां प्रवेश थवा देवो नहि, एम शुद्धास्म स्वरुपनु रक्षण करवू, शुद्धास्म अनुभवमा विचरवू ते अंतरंग क्रियाशुद्धि छे. ययुक्त-द्रव्यानुयोग