SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 251
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८५ स्मरण तथा ध्यान करतां तथा शुद्धास्मगुणमा रक्षण करतां सत्तागते रहे ली श्राप समान माहरी सर्वे शक्तिप्रो प्रगट थाय, सहज शिवलक्ष्मीनी प्राप्ति थाय ॥ ६ ॥ इम निजगुण भोगी हो, के स्वामी भुजंग सुदा ॥ जे नित वंदे हो, के ते नर धन्य सदा ॥ देवचंद्र प्रभुनी हो, के पुण्येभक्ति सधे ॥ आतम अनुभवनी हो, के नित लित शक्ति वये ॥ ७॥ . अर्थः-एम शुद्धात्म गुण पर्यायने निरंतर भोगवनारा परमानंद समूह हे श्री भुजंग स्वामी! पवित्र भाव वडे जे आपनुं नित्यवदन स्मरणादि करे छे तेज पुरुषो आ जगत्त्रयमां धन्य छे ! तेज पुरुषो स्तुति पात्र छे, तेज पुरुषो कृतार्थ छे, हे देवाधिदेव ! आपनी भक्ति महत्पुण्यना योगेज साधी शकाय छे वली मापनीज भक्तिना पसाये पोजना चंद्रमानी पेठे श्रात्म अनुभवनी शक्ति
SR No.010575
Book TitleViharman Jina Stavan Vishi Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJatanshreeji Maharaj, Vigyanshreeji
PublisherSukhsagar Suvarna Bhandar Bikaner
Publication Year1965
Total Pages345
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy