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॥ अथ त्रयोदशम चंद्रबाहु जिन स्तवनम् ॥
॥ श्री अरनाथ उपासना ॥ ए राग ॥ ॥ चंद्रबाहु जिन सेवना, भव नाशिनी तेह ॥ पर परिणतिना पासने, निष्कासन रेह ॥ चंद्र० ॥ १॥
अर्थः-अज्ञानादि अष्टादश दूषण रहित तथा अनंत चतुष्टय सहित तथा शुद्ध नये प्रास्मधर्मनो उपदेश प्रापी भव्य समूहने मोक्षमार्गे दोरनार, विदेह क्षेत्रमा विहरमान श्री चंद्रबाहु जिनेश्वरनी शुद्ध भावे ( आलोक परलोक संबंधी विषय भोगनी आकांक्षा रहित शुद्धात्म भाव प्रगट करवाना हेतुरूप) करेली सेवा. स्तूर्य जेम अंधकारनो शीघ्रमेव नाश करे छे लेम लीला मात्रमा भव भ्रमणनो नाश करनार छ तथा " पर परिणतिना पासने निष्कासन रेह" जेम हरण शब्दना विषयमां मोहित थइ विविध प्रकारना वाजींचना मधुर कोमल स्वरना राग वशे पारधीये नांखेली जालमा प्रावी फसे छे, पोतानी स्वतंत्रताने गुमावी पराधीन थइ जीव जोखममा भावी पडे छे. तेमज संसारी प्राणींनो