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१६२ अहिंसा धर्मनुं पालन करनार सर्वे धर्मर्नु पालन करनार छे, कारण के सर्वे महावतो, तथा क्षमा'दिक दश धर्मो, तथा परिसह सहन, तथा तप, संयम विगेरे सर्वे धर्मो अहिंसानाज अंग छे, तेमाज कारणो छे, माटे सर्वे धर्मोनो अहिसामां समावेश थाय छे.
सव्वानोवि नइअो, जह सायरंमि निवडंति, तह भगवई अहिंसि, सब्वे धम्मा समिल्लन्ति," तथा वली "अहिंसा सर्व जीवानाम्, सर्वज्ञैः परिभाषिता, इदं हि मूलं धर्मस्थ, शेषस्तस्यास्ति वि. स्तरः” माटे अकषायमा वर्ततो मुनि, नवा कर्मबंधने अटकावतो, पूर्व बांधेला कर्मनी निर्जरा करतो, जन्म मरणादि दुःखनो क्षय करी परमानंदपदनेमोक्षपदने प्राप्त करे छे. यदयुक्तं-श्राचारांग सूत्रे जीजा अध्ययने " जे क्रोधने छोडे छे ते मानने छोडे छ जे मानने छोडे छे ते मायाने छोडे छे; जे माया ने छोडे छे ते लोभने छोडे छे; जे लोभने छोडे छे ते रागने छोडे छ; जे रागने छोडे छे ते द्वेषने छोडे छ; जे द्वेषने छोडे छे ते मोहने छोडे छे; जे मोहने छोडे छे तेगर्भधी मुक्तथाय छे; जे गर्भधी मुक्त थाय छे ते जन्मथी मुक्त थाय छे; जे जन्मथी मुक्त थाय