SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुन्दर भाव कहे है जे प्रसन्न प्रभु मुख प्रहेतेहिज नयन प्रधान जिनवर । जिन चरणे जे नामिये, मस्तक तेह प्रमाण जिनवर । अरिहा पद कज अरचिये सलहीजे ते हत्थ जिनवर प्रभु गुण चितन में रमे, ' तेहिज मन सु यत्थ ज़िनवर ॥ श्री. भात अपने जीवन को प्रभु भक्ति से ही सार्थक मानते हैं। भक्ति से भक्त भगवान बन जाता है। पाठ श्री अनंतवीर्य भगवान के स्तवन में-जीवशक्ति का स्वरूप बड़े सुन्दर ढंग से बताया है यद्यपि जीव सहु सदा, . वीर्थ गुण सत्तावत रे। पण कर्मे आवृत चल तथा, बाल बाधक भाव नह त रे । मन०२ । जो कि सारे संसारी जीव वीर्य-गुण की सत्तावाले हैं, पर कर्मों से घिरे होने से वह वीर्य गुण विकारी, चचल, बाधा पैदा करनेवाला हो रहा है । भगवान की भक्ति से वह वीर्यगुण विकार मुक्त होता है। . नवमे श्री शूरप्रभू भगवान के स्तवन में भगव न को शूरता का ध्यान कितने सुंदर शब्दों में श्रीमान ने किया है
SR No.010575
Book TitleViharman Jina Stavan Vishi Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJatanshreeji Maharaj, Vigyanshreeji
PublisherSukhsagar Suvarna Bhandar Bikaner
Publication Year1965
Total Pages345
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy