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__ १४० नाय, धर्मोपदेशो जन रंजनाय” एम विष गरल अने अन्योन्यानुष्टान सेवतां संसारीक दुःख थी मारी निवृत्ति थइ नहि. कारण के “निच्चुन्नो "तंबोलो, पालेण विणा न होइ. जह रंगो; तह दाण सील तब भावणाओ अहलाओ भाव 'विणा जेम चुना विना तांबुल, अने पास विना वस्त्र रंग पामे नहीं तथा जेम अंक विना मीडा निष्फल थाय तेम शुद्धात्म भाव राहत दान, शील, तप अने भावना संसारथी मुक्त करी शके नहीं. जल विना जेम सरोवर, सुगंधी विना जेम कमल, चंद्रमा बिना जेम रात्री, सूर्य विना जेम दिवस, तथा जीव विना जेम शरीर शोभा पामतां नथी; तेम भाव वगर साध्य निरपेक्ष क्रियाअो शोभा पा
मती नथी. पण जो ते आवश्यक आदि करणीश्रो __ भावपूर्वक करवामां श्रावे तो ते मोक्षनुं कारण __ थाय. जेम अंक सहितनां मींडां दशगुणी सख्या
वधारनार थाय छे. माटे भानुं स्वरूप जाणवू .. जोईए. " उवओगो भाव इति ” अर्थात् सूत्रनी - साखे वीतरागनी आज्ञाए ज्ञान पूर्वक हेय उपादे___ यनी परीक्षा करी अजीव तत्व तथा प्रास्रव तत्त्व