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________________ तत्व (मण अनुसरिये । द्रव्य भाव आश्रव परिहरिये । देवचंद्र पद वरिये ॥ राग द्वष को जीतनेवाले को जिन कहते हैं उन जिनवर के वचनों का अनुसरण करना चाहिये । छोड़ने योग्य जानने योग्य और आदरने योग्य तत्त्वों को समझ कर द्रव्य भाव से पाप कारणों को त्याग देना चाहिये। तभी मोक्ष पद प्राप्त होता है। कितना सीधा रास्ता है। ___ पांचवें सुजात स्वामी के स्तवन में नयों का विचार प्रौढ़ पाण्डित्य पूर्ण भाषा मे बड़े सुन्दर ढंग से किया है। अंश नय मार्ग कहाया, ते विकलप भाव सुरणाया । नय चार ते द्रव्य थपाया, शब्दादिक भाव कहाया ॥ अनंत धर्मात्मक वस्तु की एक अंश की जानकारी एवं स्वरूप व्याख्या को नय कहते हैं। नैगमादिक चार नय द्रव्य पदार्थ को बताते हैं और शब्दादिक तीन नय पर्याय--अवस्था विशेष को बताते हैं। ___ इसी स्तवन में अपेक्षा से पदार्थ को देखने की प्रेरणा करते हुए श्रीमान ने गाया है की। स्थाद्वादी वस्तु कहीजेतमु धर्म अनंत लहीजे ।
SR No.010575
Book TitleViharman Jina Stavan Vishi Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJatanshreeji Maharaj, Vigyanshreeji
PublisherSukhsagar Suvarna Bhandar Bikaner
Publication Year1965
Total Pages345
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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