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थाय छे. पण हे विशालप्रभु ! आप तो अज्ञान विषय ने कषायादिदोषाथी सर्वथा निवृत्त होवाथी पृथ्व काय, अप्काय, तेजःकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय तथा सकाय ए छ कायना जीवोना द्रव्यभाव प्राणना यथार्थ ज्ञाता हो तथा विषय कषायादि दोषोए रहित होवाथी निरंतर अप्रमाद अवस्थामा अवस्थित रही कोइपण जीवना द्रव्यभाव प्राणाने रंच मात्र पण दुषवता नथी माटे मत्य न्याये या त्रिभुवनमां " जीव रक्षकनुं " विरुद आपनेज लायक छे.
तथा स्थितिबंध अने रसबंधनो हेतु सर्वे कर्मनो राजा तथा संसारी जीवोनो अजीत शत्रु एवा मोहरूप महान् शत्रुधी ससारी जीवोंने बचावचा माटे तथा ते मोहने नाश करवानो साचो उपाय बतावनार तथा ते उपायमां प्रवृत्त थवाने प्रेरणा करनार एक आपज समर्थ शुभट को तेथी साचा 'मोहनिवारक पण आपज को.
तथा अत्यंत दुःखदायक भवाटवीमांथी नीकली अत्यंत कल्याणकारी मोक्ष नगरे जवाना जिज्ञासु, मोक्ष सन्मुख साचा माग गमन करनार, क्रोध मान माया लोभ श्रादिने दूर करी सम परिणामे