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.. अर्थ:-"द्रव्यना सर्वे धर्मो तेना परमगुणना अनुयायी रणेज वर्ते" ए न्यायानुसारे आत्मानो परमगुण जे चेतनता तदनुयायीपणे वर्तता ज्ञान दर्शन चारित्र तप वीर्यादि परिणामोने पोताना परिणाम जाण्या सद्दह्या अने एधी विपरित, चेतनतान अनुयायीपणे नहि वर्तता, रूप रसगंध स्पर्शादि तथा चलन सहायादिक परिणामोने, पर द्रव्यना परिणाम जाण्या सद्दह्या. एम भेदविज्ञानना प्रबल पराक्रम घडे पोताना गुण पर्याय तथा पर द्रव्यना गुण पर्यायने यथार्थ भिन्न भिन्न जाणी पर द्रव्यना. गुण पर्यायमाथी अहंममत्व उठावो राग द्वेषादि विभाव परिणामने दुःखदायक तथा कर्मबंधना हेतु जाणी, पोतानी आत्म भूमिमाथी तेनो तदन अभाव करी, पोताना गुण पर्यायने पोताथी अभेद स्वरूप जाणी-तेमांज अभेदपणे 'तल्लीन थया. संकल्प विकल्प रूप समल परिणामने तजी निर्विकल्प-अचल परिणामरूप यथाख्यात् चारित्र-द्वादशम गुणस्थान पामी अंत्तर मुहूत्तमा घातीकमनो नाश करी श्री सूरस्वामी अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत चारित्र, अनंतं वीर्यना स्वामी तथा भोक्ता थया. ययुक्त मालिनी छंद-निज माहिमरतानां भेदाविज्ञान,