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- एम सम्यक्ज्ञान तथा सम्यक्चारित्रन मूलकारण सम्यक्दर्शन के एम जाणी श्री सूर प्रभुजीए दर्शनमोहनीय प्रकृतिनो नाश करी अत्यंत शुद्ध निपुण क्षायिक समकीत प्रगट करी “ अविरति पणाशी? पांच इंद्रिउ तथा.. मननो निग्रह नहि तथा षट्काय जीवना द्रव्य भाव प्राणनी हिंसानो स्याग नहि एवं बार प्रकारनी अविरति तेनो, नाश कर्यो. पंच इंद्रिांना वीश विषयोमा तथा मनना शुभाशुभ संकल्पोमा प्रास्म परिणामने विक्षिप्त करवाथी तथा स्वपर जीवना द्रव्य भाव प्राणनी हिंसाथी ज्ञानावरणादि कर्मनो बंध थाय छे अने कर्मबंध वडे सहज प्रात्म समाधिनो घात थई अत्यंत दुःखदायक श्रा संसार समुद्रमा परिभ्रमण करवूपडे छे.एम क्षायिकसमकीत वडे जेणे श्रद्धापूर्वक जाण्युं तेनो परिणाम अविरतिमा केम प्रवेश करे ? एम अविरतिनो नांश थवाथी परभाव राग द्वेष विभावादिकनो त्यांग तथा ज्ञान दर्शन चारित्रादि स्वगुणमा रमण रूपं शुद्ध चारित्रथी पोताना आत्म वीर्यनी एकता करी अर्थात् सकल आस्म वीर्यने स्वभावाचरणमांज वर्तावी परिणाति कल्लुषता