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१०॥
आवर्तने अधरे” "जह मूलंमि विणठे, दुमस्त परिवार नच्छि परिवुढी । तह जिण दसण भठा, मूल विणठा ण सिझात ॥” .
जेम मूल विनष्ट, वृक्ष शाखा परिशाखानी परिवृद्धि पामे नहि, तेम धर्मनुं मूल सम्यक्दर्शन नष्ट थतां मोक्ष प्राप्ति थाय नहि.
"जिण पणत धम्म, सद्दहमाणस्त होइ रयणमिणं । सारं गुण रयणाणय, सोवाणं पढम मोरकस्त ॥" - 'गुण रत्नाकरमा सारभूत जे सम्यक्दर्शन ते श्री जिन प्ररुपित धर्मनी श्रद्धा राखनारने होय छे अर्थात् नयनिक्षेप पक्ष प्रमाण युक्त जिन प्ररुपित तत्वनी यथार्थ श्रद्धा ते सम्यक्दर्शन छे जे मोक्षनु प्रथम सोपान ( पगथी ऊं) छे.
"संजम रहिअंलिंगं, देसण भठं न संजम भाणयं । आणा होणं धम्म, निरत्थय होइ सव्वपि ॥”
। • साधुनो लिंग-धेश, संजम विना शोभा पामे