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१०६ छे. तेनो (मोहनो) जगत्त्रयना ईश्वर, जगत् शिरोमणी श्री सूर प्रभुए अत्यंत तीक्षण सम्यक्पराक्रमथी सम्यक् ज्ञान चारित्र रूप अत्यंत तीक्षण मम भेदक शस्त्रो वडे छिन्न भिन्न करी अल्पकालमां पराजय-समूल नाश कर्यो भविष्यमां कोई पण काले एईं दुष्ट कृत्य करवाने पुनः समुस्थित-संजीधन थाय नहि. अने जीवादि पंचास्तिनी शुद्ध स्याद्वादपणे तथा लक्ष्य लक्षण अभेदपणे शुद्ध निश्चय नये निजपर सत्ता जाणी सत्तागते रहेला अनंत धर्मात्मक शुद्धात्म द्रव्यने कर्म मलथी रहित अत्यंत शुद्ध प्रगट करी जगत् अयमां पूज्य, प्रशंस. नीय, आह्लादकारी, प्रांदरणीय परमात्म (मोक्ष) पद निपजाव्यु-संप्राप्त कर्यु ययुक्तं-शार्दुल विक्री डितम् ॥ " त्यक्त्वाऽशुद्धि विधायि तत्किल पर द्रव्यं समग्र स्वयं, स्वद्रव्ये रति मेति यः सनियतं सर्वापराधच्युतः, बन्धध्वंस मुपेत्य नित्य मुदितः स्वज्योतिरच्छोच्छल-च्चैतन्यामृतपूरपूर्ण महिमा शुद्धो भवन्मुच्यते" ॥१॥ प्रथम मिथ्यात्व हणि शुद्ध देसण निपुण, "