SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 168
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कोडवानी रूची होय तेनेज समकीती आणवो पण मात्र जीव्हाये बोलवाथी समकीत नथी. कारण के श्री जिनेश्वर समकीतनां पांच लक्षण कहे छे. भने लक्षण विना लक्ष्यनो प्रसद्भाव होय ए न्याय छे माटे " उपशम, संवेग, निर्वेद, अनुकंपा अने आस्तिक्यता " ए पांच लक्षणो जे जीवमां न होय ते जीवने समकीत छे एम केम मनाय ? उपशम-क्रोधादि कषायोने उपशांत करे. ' संवेग-सहज निरूपाधिफ परमात्म पद प्रगट करवानी रूची. निर्वेद-संसारने तथा पौद्गलीक विषयोने हालाहल विष समान जाणी तेथी निवृत्ति थवानी रूची. अनुकंपा-स्वपर जीवना द्रव्य भाव प्राण घात करवानो परिणाम नहि. . . मास्तिक्यता-अनंतज्ञानी अने वीतरागी प्राप्त श्री जिनेश्वरनुं एक पण बचन अन्यथा न होय एवी श्रद्धा.
SR No.010575
Book TitleViharman Jina Stavan Vishi Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJatanshreeji Maharaj, Vigyanshreeji
PublisherSukhsagar Suvarna Bhandar Bikaner
Publication Year1965
Total Pages345
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy