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जो समकीतमूल ताजू होय तो व्रततरु शिव फल मापी शके माटे मोक्षफलना इच्छक पुरुषे सर्वधी पहेलां समकीत रस्न प्राप्त करवानो उद्यम करवो ए सार छे. माटे समकीत शी वस्तु के ते जाणवू जोइये. "जिय अजिय पुणपावा-सव संवर बंध मुस्क निझरणा । जेणं सद्दहइ तयं, सम्म खइगाइ वह भेअं॥"
जीवा जीवादिक नव तत्त्वतुं स्वरूप श्री. जिनेश्वरना आगम प्रमाणे नयनिक्षेप पक्ष प्रमाणे यथार्थ ज पी सद्दहवं तथा हेय तत्त्वने छांडवानी रूची तथा उपादेय तत्त्यने भादरवानी रूपी ते समकीत जाणवू. तथा च तत्त्वार्थ सूत्रे-" तत्त्वार्थ श्रद्धानं सम्यग्दर्शनम्-" "जीवाजीवास्त्रव पंध संवर निर्जरा मोक्षास्तत्त्वम्- तेमां जीवतत्त्व, संवरतत्त्व, निर्जरातत्त्व, भने मोक्षतत्त्व ए चार तत्त्व उपादेय मे था अजीव प्रास्त्रव पंध एत्रण तत्त्व मास्म गुणना रोधक होवाथी हेय के. माटे उपादेयने भादवानी रूची तथा हेय तत्त्वने