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मापनेज सेघवाथी मारी सिद्धि थशे तथा देवी चंद्रमा समान अरिहंत पदनी प्राप्ति थशे तथा परमानंदरूप उत्तम समृद्धिनी संप्राप्ति थशे. ॥१०॥
॥संपूर्ण ॥ ॥अथ नवम श्री सूरप्रभ जिन स्तवनम् ॥
॥ देशी कडखानी॥ सूर जगदीशनी तीक्ष्ण अति शूरता, तेणे चिरकालनो मोह जीत्यो ॥ भाव स्यादवादता शुद्ध परगास करी, नीपन्योः परमपद जग वदीतो ॥ सू० ॥१॥ __ अर्थ:-अनादिकालथी लागेलो मोहरूप महान् शन्नु के जे दर्शन-मोहनीय प्रकृति वडे भास्माना, सम्यक् दर्शन गुणनो, तथा क्रोध बडे प्रात्माना क्षमा गुणनो, मान वडे प्रात्माना मादव गुणनो, माया वडे श्रात्माना आर्यव गुणनो, तथा लोभ घडे भास्माना मुत्ति-निर्लोभ-निस्पृह गुणनो, एम भनेक गुणनो घात करी आस्मानी शुद्ध सहज अपरिमित प्रात्मीय समाधिनो नाश करी भवरूप जेलखानामां त्रिलोकपूज्य भास्माने केद करी राखे