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________________ ११२ छोडवानी रूची होय तेनेज समकीती जाणवो पण मात्र जीव्हाने बोलवाथी समकीत नथी. कारण के श्री जिनेश्वर समकीतनां पांच लक्षण कहे छे. भने लक्षण विना लक्ष्यनो भसद्भाव होय ए न्याय छ माटे " उपशम, संवेग, निर्वेद, अनुकंपा अने आस्तिक्यता" ए पांच लक्षणो जे जीवमां न होय ते जीवने समकीत छे एम केम मनाय.१ , उपशम-क्रोधादि कषायोने उपशांत करे.. , संवेग-सहज निरूपाधिक परमात्म पद प्रगट करवानी रूची. निर्वेद-संसारने तधा पौद्गलीक विषयोने हालाहल विष समान जाणी तेथी निवृत्ति थवानी रूची. . . .. ___ अनुकंपा-स्वपर जीवनां द्रव्य भाव प्राण घात करवानो परिणाम नहि.... ., मास्तिक्यता-अनंतज्ञानी अने वीतरागी प्राप्त श्री जिनेश्वरनुं एक’ पण वचन अन्यथा न होय एवी श्रद्धा. "
SR No.010575
Book TitleViharman Jina Stavan Vishi Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJatanshreeji Maharaj, Vigyanshreeji
PublisherSukhsagar Suvarna Bhandar Bikaner
Publication Year1965
Total Pages345
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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