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ने रंगे, योगी थयो उमंगेरे ॥” एम योग वशे कर्मनो ग्राहक थाय ले. ते योगर्नु स्वरूप निचे प्रमाणे " वीयांतराय क्षयोपशमोत्पन्नो मनो वचन काय वर्गणालंबनः कर्मादान हेतुभूत
आत्मप्रदेश परिस्पदो योगः ” वीर्यातराय 'कमना क्षयोपशम वडे उत्पन्न मन वचन अने काय वर्गणानु अवलंबन करनार कर्म ग्रहण करवामां कारणभूत आत्म प्रदेशनुं परिस्पद ( संचलन ) ते योग छे. तिहां जघन्य वीर्यवालो जे जीवप्रदश ते वली केवलीना तीक्षण बुद्धि रूप शने करी छेदतां जे वीर्याशनो वीजो विभाग थई शके नहि ते वीर्य विभाग के अने भावाणु पण तेनेज कहीये. तेषा लोकाकाशथी असंख्यात गुणा जे वीर्याणू तेणे करी सहित जे जीवप्रदेश तेनो समुदाय एटले जीवप्रदेशनी श्रेणी ते प्रथम वर्गणा, तेथी एक वीर्य विभागे अधिक एवी जे जीव प्रदेशनी श्रेणी से बीजी वर्गणा, बे वीर्यविभागे अधिक एवी जे जीव प्रदेशनी श्रेणी ते त्रीजी वर्गणा, एम एकेक वीर्य'विभागे अधिक वीर्यवाला प्रवेशनी श्रेणी ते घनीकृत लोकनी एक प्रदेशिक सूची श्रेणीने असंख्यात