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पासय ॥ जि० ॥ श्री० ॥ ९॥ । अर्थः-स्तवन कर्ता श्री देवचंद्र मुनि कहे छे के तरण तारण सामान्य केवलीमोमां राजा समान श्री रूषभानन तीर्थकरना चरण पसाय सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन, सम्यक् चारित्रनी संपूर्णता तथा पूर्ण अव्यावाध पणुं तथा अमायी, अलेशी, अकंदी, भलोभीपणा आदि सर्वे आत्म गुणनी संपूर्णता रूप देवमां चंद्रमा समान परमात्म पदनी सिद्धि पामीये, कृत कृत्य थइये, अनंत काल सुधि सहज भखर परमानंद विलासने पामीए.॥६॥
॥संपूर्ण । ॥ अष्टम श्री. अनंतवीर्य जिन स्तवनम् ॥ ____ धरणाली चामुंडा रण चडे ॥ ए देशी ॥ : ॥ अंनत वीज जिनराजनो, शुचि वीरज परम अनंतरे ॥ निज आतम भावे परिणाम्यो, गुण वृत्ति वर्तनावंतरे ॥ मन मोह्यं 'अम्हारु प्रभु गुणे ॥ १ ॥. . : ... "
अर्थः सामान्य केवलीउंमां राजा समान श्री अनंतवीर्य भगवंत ! मापनुं "पीय" ज्ञानदर्शनादि