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गुरु तथा जगतदेव हे रुषभानन स्वामी ! ज्यांसुधी गद्धात्म तत्त्वरूप स्वाभाविक अखंड अखूट अनुत्तर संपदानी मने संपूर्णपणे सिद्धि प्राप्ति न थाय त्यांसुधी हे दीनदयाल ! आपना द्रव्य भाष रूप चरण युग्मनुं निरंतर सेवन करूं एम भावना भाईं छं ॥७॥ कारज पूर्ण कर्या विना, कारण केम मुकाय
जि०॥ कारज रुचि कारण तणा, सेवे शुद्ध उपाय ॥ जि०॥ श्री०॥८॥
अर्थ:-जेम समुद्र पार पामवानो इच्छक पुरुष जो समुद्र बच्चे वहाणनो त्याग कर तो समुद्र पार जइ शके नहि भने बच्चेडूबीजाय. माटे हे भगवंत! परमात्म सिद्धिरूप माहरु कार्य ज्यां सुधि सिद्ध थयु नथी त्यांसुधि पुष्टालंबन रूप अपिना चरण युग्मनी सेवना केम छोड़ें ? कारणं के कार्य सिद्धिनो रुचिवंत पुरुष कार्य सिद्ध थता सुधी शुद्ध कार णोने यथार्थ पणे सेवे-मादरे ए नीति छ. ॥ ८ ॥
ज्ञान चरण संपूर्णता, अव्याबाध अमाय || जि० ॥ देवचंद्र पद पानी, श्री जिनराज