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प्रास्ताविक कुछ
अन त ज्ञानी दृष्ट भूगोल में असंख्यात द्वीप समुद्रों का वर्णन आता है । उनमे भी मनुष्यों का नित्रास जबूद्वीप, धातकी खंड, आधा पुष्कर द्वीप ऐसे ढाई द्वीपों में है । ढाई द्वीपों के महाविदेहों की विजयों मे वीस विचरते हुए तीर्थ कर भगवान अपना परम पावन धर्म शासन प्रवृत्तिमान कर रहे हैं उन बीस विहरमान भगवानों के स्तवन अध्यात्म रसिक महापण्डित श्रीमद्देवचन्द्रजी महाराज ने अपनी ओजपूर्ण सरस भाषा में गाये हैं | जो इस प्रस्तुत पुस्तक में पाठकों की सेवा में उपस्थित हैं ।
महापण्डित श्रीमद्देवचन्द्रजी महाराज कौन थे ? कब हुए ? कहां हुए ? ये प्रश्न साहजिक भाव से पैदा होते हैं । " पुरुष विश्वासे वचन विश्वासः " - इस लोकमान्य सूत्रानुसार उनके प्रति विश्वास पैदा कराने के लिये उन प्रश्नों के उत्तर अध्यात्मने योग निष्ठ प्रभावक आचार्य श्री बुद्धिसागर सूरिजी महाराज महापरिश्रम से सपादित अपने-- श्रीमद्देवचन्द्र भाग पहले और दूसरे में बड़े विस्तार से दिये हैं । इसी प्रकार का विशिष्ट प्रम श्रीयुत मणिलाल मोहनलाल पादराकर ने भी " श्रीमददेवचन्द्र जी जोवन चरित्र" नाम की पुस्तक मे किया है। साधारण रूप से जैन समाज का बघा २ श्रीमद देवचन्द्रजी महाराज के नाम से परिचित है।
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