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परानुगत थएली छे अर्थात् ज्ञानशक्ति परद्रव्यने जाणवामां, दर्शनशक्ति परद्रव्यने देखचामां-निर्धार करवामां, चारित्रशक्ति परद्रव्यमा आचरण रमण करवामां, एम सर्वे गुणो मास्मगुणना बाधकपणे परानुयायी प्रवर्ते के पण ज्यारे समकितनो लाभ पामे स्यारे परानुगत थएली प्रात्म परिणतिने शुद्धात्म भनुगत पणे प्रवत्ववानो अभिलाषी थाय, शुद्ध कार्य सन्मुख परिणति करे अर्थात् " समकित गुणथी " एटले चोथा गुणस्थानधी मांडी " शैलेशी गुण लगे" एटले चौदमा गुणस्थान सुधी परानुगत थएली आत्म परिणतिने वारी क्रमे क्रमे अधिक भधिक शुद्धताए वर्तावतो जाय. जेम जे परिणति अनात्म वस्तुमे प्रात्म जाणवासाहवा विगेरेमा प्रवर्तती हती ते चोथे गुणस्थाने आस्माने भारमा जाणवा-सदहवा विगेरेमा प्रवर्तावे तथा जे परिणति हिंसादि पांच भव्रतमा वर्तनी हती ते पांचमे छठे गुणस्थाने अहिंसादि, पांच व्रतमा वर्मा तथा मद विषय कषाय निंद्रा विरूयामा जे परिणति वसंती इती ते वारी सतिमे गुणस्थाने अप्रमत्त भावे भास्मगुण रमणमा वर्तावे एम अाठमे गुणस्थाने रसघात स्थितिघात गुण