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धारी छ. जो आपनी प्राज्ञाने मस्तके चढ़ावी तदनुसार सम्यक्पराक्रम बजावी सम्यक्दर्शन ज्ञान चारित्रने प्रारूं-सेवु तो आप सदृश परमानंद भोगने निःसंदेह प्राप्त थाउं. उक्तंच-"तत्वार्थ श्रद्धानं सम्यग दर्शनं, यथार्थ हेयोपादेय परीक्षा युक्त ज्ञानेन सम्यग्ज्ञानं, स्वरूप रमण पर परित्याग रूपं चारित्रं येतद्रत्नत्रयी रूप मोक्ष मार्ग साधनात् साध्य सिद्धिः” एम में अापना न्याय युक्त अबाध्य वचनना प्रसादे परीक्षा पूर्वक माहरी सत्तानो निर्धार कर्यो छे ।।७॥ तुं तो निज संपत्तिनो भोगी, हुं तो पर परिणतिनो योगी रे ॥ मन० ॥ तिण तुम प्रभु माहस स्वामी, हुं सेवक तुज गुण ग्रामी रे ॥ मन० ॥८॥ .. अर्थ:-हुं अनादिथी कर्म शत्रुनी जेलमां पडेलो होवाथी अनंत काल सुधी माहरी ज्ञानादि अखूट लक्ष्मीनुं मने दर्शन पण न मल्युं तेथी जड चल जगत् जीवनी एंव, जलना परपोटा जेवी क्षणभगर, पराधीन, चाहदाहथी बालनार, माहराथी'