SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत्वज्ञानका साधन। [७९ चेतनालक्षण जीवको जान लेना । ठंडी हवाको मालूम कर यह रोगकारक होगी ऐसा जानना श्रुतज्ञान है। शास्त्रोंको पढ़कर या सुनकर अर्थ समझना श्रुतज्ञान है। जो ज्ञान द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावकी मर्यादा लिये हुए विना इन्द्रिय और मनकी सहायताके पुदल द्रव्यका तथा संसारी आत्माओंका हाल जान सके वह अवधिज्ञान Visual Knowledge है जैसे अपने या दूसरे पूर्व जन्म व आगेके जन्मका हाल जान लेना। कितने मोटे या महीन पदार्थको जाने वह द्रव्यका ज्ञान है, कितनी दूर तकके भीतरकी बात जाने वह क्षेत्रका ज्ञान है। कितने समय आगेकी व पीछेकी वात जाने वह कालका ज्ञान है। कितने गुणोंको व स्वभावोंको जाने वह भावका ज्ञान है। बहुतसे साधु योगबलसे इम ज्ञानको पालेते है तब उनसे कोई पूछे कि हमारे पूर्व जन्मोंका हाल कहिये तो वह उस ज्ञानसे उसी तरह सब हाल देखकर जानते है जैसे किसी चित्रसे सब हाल जाना जासके। अवधिज्ञानवालेको अपनी मर्यादाके भीतरके पदार्थ प्रत्यक्षके समान दीख जाते है जैसे किसीको चार कोस तकका ज्ञान है तो वह यहां बैठा हुआ कोस तकका सब हाल जान सक्ता है। ___मनःपर्यय ज्ञान Mental Knowledge उसे कहते हैं जो अवधिज्ञानकी तरह द्रव्य, क्षेत्र, क ल, भावकी मर्यादा लिये हुए दूसरोंके मनमें विचार किये जानेवाले पुद्गल व संसारी जीवोंको विना इन्द्रिय व मनकी सहायताके आप ही जान ले । यह ज्ञान योगियोंको योग बलसे होता है। एक आदमी १००० मीलकी दूरीपर किसी गणितके प्रशका विचार कर रहा है। मनःपर्यय ज्ञानवाला साधु
SR No.010574
Book TitleVidyarthi Jain Dharm Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherShitalprasad
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy