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________________ A तत्वज्ञानका साधन। [७७, (८) जीव कहीं थोड़े व कहीं अधिक पाए जाते है । जैसे बम्बईमें बहुत मानव हैं-दिहलीमें कम है। क्या आप अजीवपर आठ बातें कह सकोगे ? शिष्य-मैं कोशिश करता हूं (१) अजीव है क्योंकि यह कलम या दावात, कागज सब । अजीव है। इनमें जीवपना नहीं है, हम देख रहे है। यह सत् है। (२) अजीवके भेद पाच है, पुदल, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाश और काल, यह संख्या है। (३) अजीवोंका क्षेत्र सर्वलोक है, विशेष करके इस दाबातका वह क्षेत्र है जहां यह इस वक्त है। यह क्षेत्र है।। (४) अजीवोंका स्पर्शन आकाशकी अपेक्षा अनंत है। विशेष करके यह दावात जहांतक हम लेजावे वहांतक जासक्ती है, इसका यह स्पर्शन है। मेघ जहां बने वह तो उनका क्षेत्र है। जहांतक के उडके जासक्त है वहांतक उनका स्पर्शन है। (५) अजीवोंका काल सामान्यसे अनंत है। विशेषसे एक चौकी जहांतक टूटे नहीं वहांतक उसका काल है। एक मकान जहांतक गिरे नहीं वहांतक उसका काल है । (६) अजीवोंमें विशेषकी अपेक्षा ऐसा जानना कि यह नगर पहले वसा था फिर उजाड़ हुआ बादमें बस गया, वीचमें ५०० वर्षे लगे यह अंतर है। (७) अजीवोंके गुणोंको बताना भाव है, जैसे पुद्गल उसे कहते है जहां स्पर्श, रस, गंध, वर्ण पाए जावें। - (८) अजीवोंमें विशेष करके किसी जगह काठ भरा है सो
SR No.010574
Book TitleVidyarthi Jain Dharm Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherShitalprasad
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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