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________________ विद्यार्थी जैनधर्मे शिक्षा। दिन, रात, सप्ताह, मास आदि व्यवहार काल है जो काल द्रव्यको अवस्थाएं है। काल द्रव्यकी पर्याय सबसे कम काल एक समय (Instant) है। समयोंसे मिनट आदि वनने है। इस व्यवहार कालका जानपना तीन तरहसे होता है। (१) अवस्याओंके बदलनेसे, जैसे चावलका भात बना। जितना समय भात बननेमे लगा वह व्यवहार काल है। (२) एक स्यानसे दूसरे स्थानमे जानेसे, जैसे हम कलकत्तेसे दिहली गए, जितना समय लगा वह व्यवहार काल है। (३) कई आदमी एक प्रकारके कामको करें व कहींपर जावें इसमें सबको एकसा समय न लगेगा कम व अधिक लगेगा, यही व्यवहारकाल है। असली या निश्वर कालद्रय कालाणु (cme utors) है जो सर्व लोक्में भिन्नर रत्नोंके ढेग्के समान फैले हुए है । ये ही कालाणु उसी तरह अपने पासके पदार्थों के बदलने में कारण है जैसे गाडीके पहियके पलटानेमे कारण धुरी होती है। धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय दोनों अलगर अमूर्तीक अखंड द्रव्य है । हरएक लोकव्यापी है । धर्मास्तिकाय (midrum of nction) जीव और पुद्गलोंको गमन करते हुए उसी तरह मदद देता है जैसे पानी मछलीको चलनेमे मदद देता है। अधर्मास्तिकाय (midium of rest) जीव और पुद्गलोको ठहरनेमें मदद देता है जैसे छाया पथिकको ठहरनेमे मदद देती है। ये दोनों चलाने या ठहरानेमें प्रेरक नहीं है* इन दोनों द्रव्योंका जहांतक फैलावा है वहीं. तक जीव पुद्गल जासक्ते हैं और फिर ठहर जाते है। इन ही दोनों *-गतिस्थित्युपग्रहो धर्माधर्मयोरुपकारः ॥ १७५ त० सू० ॥
SR No.010574
Book TitleVidyarthi Jain Dharm Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherShitalprasad
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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