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________________ विद्यार्थी जैन धर्म शिक्षा। सींगके विना भी जानवर मिलते है। या कोई कहे जीवका लक्षण। क्रोध करना है, इसमें भी अव्याप्ति टोप है। क्योंकि हर समय जीवमें क्रोध नहीं मिलता। क्रोध विना भी जीव मिलते हे। लक्षण उमे ही कहते है जो सदा पाया जावे। ___ अतिव्याप्ति दोष उसे कहते है जो उस पदार्थमें भी रहे जिसका लक्षण करते है और उसके सिवाय अन्य पदार्थोंमें भी पाया जावे। जैसे गौका लक्षण सींग करना। क्योंकि सींग भैस. हिरन, वकरे आदिमे भी पाए जाते है, इसलिए इस रक्षणमे अतिव्याप्ति दोष है। क्योंकि यह लक्षण उस पदार्थकी हदके वाहर चला गया। इससे गौकी पहचान नहीं होसकती। या यह कहना कि जीव उसे कहते है जो अमूर्तिक ( Immaterial) हो । इसमें भी अतिव्याप्ति दोष है क्योंकि अमूर्तिक तो आकाश भी है। इससे जीवकी पहचान न होसकेगी, कोई आकाशको ही जीव मान लेगा। असंभव दोष उसको कहते है जो साफ साफ न होतासा दीख पडे। जैसे कहना शक्कर उसे कहते है जो मीटर्टी न हो। जीव उसको कहते है जो जड़ हो। शिप्य-आपने जीवका लक्षण चेतना या समझना बताया। क्या इसमें तीनों दोष नहीं आते है ? समझा दीजिये। शिक्षक-चेतनामे अव्याप्ति दोष इसलिये नहीं है कि जितने जीव हैं सबमें कुछ न कुछ समझ पाई जाती है। कीटमे, चींटीमे, मक्खीमें, मोरमें, कबुतरमे, मानवमे, सबमें चेतना है। जितने सजीव प्राणी है वे चेतना रखते है तब ही जीव सहित कहलाते है । जब चेतना निकल जाती है तब उनको अचेतन, जड़ मुर्दा कहते है।
SR No.010574
Book TitleVidyarthi Jain Dharm Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherShitalprasad
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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