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नैनोंके तत्त्व । .
___ [४९ तीसरा अध्याय।
जैनोंके तत्व। शिष्य-तत्त्व किसे कहते है ?
शिक्षक-किसी वस्तुके भावको तत्त्व कहते है। तत् यह सर्वनाम (pronoun) है। तत्का भाव सो तत्त्व है। जो पदार्थ जैसा है उसका वैसा होना भाव है।
शिप्य-जैनोंके तत्व इससे क्या मतलब है ?
शिक्षक-जिन त.वोंको जैन सिद्धांतमें आत्माका हितकारी बताया गया है उनको जैनोंका तत्व कहा गया है। हम पहले बता चुके है कि आत्माका सच्चा हित सुख शांतिकी प्राप्ति है । और यह भी समझा चुके है कि सुख व शाति आत्माका स्वभाव है तथा यह भी बता चुके है कि आत्माका असली स्वभाव शुद्ध है परन्तु संसार अवस्थामे पाप पुण्य रूपी कर्मोसे मैला है। जैन तीर्थकरोंने तथा जैनाचार्योने आत्माका पूर्ण हित स्वाधीनताका लाभ बताया है, जिसमें आत्माके स्वाभाविक सर्व गुण प्रकाशित होजावें, सर्व कर्मके मैलसे आत्मा छुट जावे। इसहीको मोक्ष या मुक्ति भी कहते है.। जब आत्मा पूर्ण मुक्त होजाता है तब इसको परमात्मा कहते है। उसहीको सिद्ध कहते है। मुक्त अवस्थामें परमात्मा सदा अपने स्वभावमे मग्न होकर निजानन्दका भोग करता है। इस ही मुख्य उद्देश्यको ध्यानमे रखकर तत्वोंका कथन जैनाचार्योंने किया है। इन तत्वोंमे यह बताया है कि यह आत्मा वास्तवमे तो शुद्ध है परन्तु जड़ कर्मोके संयोगसे