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विधा पनि ५.प्रतिसापना समिति- मल मूत्रादि निर्मनु भूमिपर देखकर करना। पांचो महान्तोंमें सावधान रहने के लिये तीन गुप्ति पालना चाहिये।
तीन गुप्ति-तीत वस्तुओं को अपने आधीन रखना। ।
१-मनांगुप्ति-मनको वश •ख .I, आत्मविचार व साम्क __ भादमें लगाए रखना।
२-वचनप्ति वचनोंको वश रखना. मौन रहना, काम पड. नेपर ही अल्प कहना।
३-कायगुप्ति-शरीरके आ उपंगोंको वश रखना, आसनसे ही बैठना, लेटना. प्रमाद रूप न रहना ।
शिय-वास्तग्में ये तेरह प्रकार चारित्र बहुत ही सुन्दर है। मैंने आपसे बहुत उपयोगी बातें जानीं । मैं आपकी कही हुई बातोंको याद ग्क्लूंगा और जिन चार साधनोंको आपने बताया है, कालेजकी पढ़ाई करता हुआ भी साधन करूगा । मुझे समद में आगया कि मैं आत्माहूं। मुझे आत्माकी उन्नतिका हर समय ध्यान रखना चाहिये। सची सुखशांति इसीमे मिलेगी।
आपने मेरे वर्तव्यमे दो बातें बताई थीं। एक सुखशांतिका लाभ, दुमग परोपकार । पहली बातको मैं अच्छी तरह समझ गया हूं । परोपकारके सम्बन्धमें मैं पूछना चाहता हूं कि मुझे त्यागः . जीवन विताना चाहिये या गृहस्थका जीवन । अभी मेरी शादी नहीं हुई है। आप बत वें कि मुझे क्या करना चाहिये।
क्षिक-आपका प्रश्न बहुत ही उत्तम है। इसमें संदेह नहीं जितना परोपकार त्याग जीवन में होसत्ता है उतना गृहस्थमे नहीं।