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विद्यार्थी जैनधर्म शिक्षा। सीधे बैठनेको पद्मासन कहने है । आपने कभी जैन मंदिरमे मनिको देखा होगा, मूर्तिका आसन जो वैठे हुए मिलता है वह ऐसा ही पद्मासन होता है। जिसमे एक पग जांघके ऊपर हो एक पग जाधके नीचे हो वह अर्ध पद्मासन है। हाथ दोनों वैसे ही रहते है। आसन लगानेसे गरीर निश्चल होजाता है। ऐसा दृढ़ होजाता है कि तेज पवन भी नहीं हिला सक्ता है। आसनसे वैठकर अपने भीतर देखो कि निर्मल जलके समान आत्मा भरा हुआ है। जैसे निर्मल जल शुद्ध, शीतल व मीठा होता है वैसे यह आत्मा शुद्ध ज्ञान पूर्ण, गातिमय व आनंदमई है। इस जल समान आत्मामे अपने मनको डुबाने। उसी तरह डबाटो जैसे नदीमे नहाते हुए पानीमें डुबकी लेते है, जब मन हटे तव नीचे लिखे मंत्रोमेसे कोई धीरे धीरे पढ़ते रहो, कभी मंत्र पढ़ना बंदकर आत्माके ज्ञान, शाति व आनंदके गुणोंको विचार लो फिर उसी जल स्वरूप आत्म.में मन हुवाओ। इस त ह तीन वातोंको बदलते हुए अभ्यास करो। (१) मनको आत्मामे अवाना, (२) मंत्र पढना. (३) गुणोंका विचार । __ मंत्र वई है पर थोडेमे तुम्हें बताता हूं
(१) ॐ, (२) अरहंत. (३) सिद्ध. (४) अरहंत सिद्ध, (५) सोऽहम्. (६) ॐ ह्रीं, (७) अई, (८) णो अरदंताण, (९) णनो सिद्धाण।
इनमेसे कोई भी मंत्र पढ़ सक्ते हो। इस तरह जितनी देरका नियम हो उतनी देर अभ्यास करो। यदि मनमें दूसरे विचार आवे तो उसकी तरफ दिल न लगाओ, उनको तुर्त हटादो-यह कहदो कि इस समय तुम्हारा काम नहीं है फिर आना। जैसे हम किसी जरूरी