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________________ २०६ विद्यार्थी पोन धर्म शिक्षा । अर्थात् अरहत (तीर्थकर). चक्रवर्ती, नागयण, बलदेव. संमिनश्रोतृऋद्धि, चारणऋद्धि, पूर्वोका ज्ञान गण पर पुलाक सावुपना, आहारक शरीर ये दश बाते वीके शरीरमे नही हाती है । टीकाकार कहते है कि मल्लिनाथ स्त्री क्यों हुप ? यह एक सास बात हुई है। नियम नहीं है इसको अछेग कहते है। दिगम्बरोके समान वे यह मानते है कि देवियोंकी उत्पत्ति दूसरे स्वर्गतक ही होती हे तथा वे वारहवे स्वर्गतक जासक्ती हे क्योंकि श्वेताम्बरी वारह स्वर्ग मानते है, दिगम्वरी ६ स्वर्ग मानते है । संग्रहणीसूत्र पन्ने ७८ मे कहा हैउववामो देवीणं कप्पदुगं जा परा महस्सारा । गमणागमणं नन्छी अञ्चय परऊ सुराणंपि ॥ भावार्थ-देवी दूसरे स्वर्ग तक उपजे परन्तु बारहवें सहस्रार तक जाय। शिप्य-आजकल दिगम्बर या श्वेतावर नोन किसको होना मानते हे ? शिक्षक-इस भरत क्षेत्रमे आजकल दानोंका यह मत है कि स्त्री व पुरुपको ऐसी शक्ति नहीं है, जिससे कोई भी मोक्ष जासके। इसी लिए इस अन्तरके रहते हुए भी मान्य नाव रखना चाहिये । बुद्धि बलमे विचारने हुए जो वात समझमे आये, सो मानना चाहिये। तीसरा अन्तर यह है कि दिगवरी ऐसा मानते है कि केवली अरहंत जिन गरीग्में रहते हुए ग्रासरूप भोजन जैसा साधु अवस्थामे करते थे वैसा नहीं करते। कितु उनके गरीरको पुष्टि टनेवाले पुद्गलके पिड (आहारक वर्गणाए ) स्वयं आकर उनके शरीरमे उसी तरह मिलने
SR No.010574
Book TitleVidyarthi Jain Dharm Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherShitalprasad
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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