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निवेदन । कालेज, स्कूल और बोर्डिंगोंके जैन विद्यार्थियोंमें धार्मिक ज्ञानकी अत्यन्त आवश्यक्ता है। धार्मिक शिक्षाकी यह कभी बहुत दिनसे खटक रही थी, मगर इसकी पूर्तिके लिये अभीतक किसी अच्छी पुस्तकका निर्माण नहीं हुआ था। हर्षकी बात है कि माननीय विद्वान लेखकने इस कमीकी पूर्ति करके समाजका स्थायी उपकार किया है।
इस पुस्तककी विषयसूचीसे ही ज्ञात हो सकता है कि इसमे 'गागरमें सागर' भर दिया गया है । " जैनधर्म प्रकाश" के बाद श्रीमान् ब्रह्मचारीजीकी यह कृति सर्वसाधारणके लिये अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगी। यदि, यह पुस्तक प्रत्येक जैन बोडिंगके विद्यार्थियोंको पढाई जाय और जैन,स्कूलोंमे धार्मिक शिक्षाके लिये अनिवार्य करदी जाय तो, उन्हें जैन धर्मका अच्छा ज्ञान हो सकता है । आशा है कि संचालक-वर्ग इस ओर ध्यान देंगे।
यधपि यह पुस्तक विद्यार्थियोंको लक्ष रखकर लिखी गई है. फिर भी इसे पढ़कर आबाल वृद्ध जैन धर्मका रहस्य समझ सक्ते है। " यो यन्त्र, अनभिज्ञः स तत्र बाल: " अर्थात् जो जिस विषयमें अजान है वह उस विषयमें बालक है, इस नीतिके अनुसार वे वयः प्राप्त भाई बहिन भी विद्यार्थी ही हैं जिन्हें जैन धर्मका ज्ञान नहीं है। अतः जैन धर्मके जिज्ञासु प्रत्येक व्यक्तिको इस पुस्तकका स्वाध्याय अवश्य कर लेना चाहिये। ____“जैनमित्र" के ३५ वें वर्षके ग्राहकोंको तो यह ग्रंथ उपहारमें दिया गया है, साथ ही हमने २०० प्रतियां और भी विक्रयार्थ निकाली है, अतः अवश्य ही एक प्रति आज ही मंगा लीजिये ।
सकाशक