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जीव तत्व।
[१०९ जीव पांच स्थावर पृथ्वी आदिमें तथा द्वेन्द्रियमे पंचंद्रिय तक सब, त्रसकायमें मिलेंगे।
४--योग तीन होते है मन, वचन, काय । एकेंद्रियोंके काय योग होता है, द्वेन्द्रियोंसे लेकर असैनी पंचेंद्रिय तक वचन और काय दो योग होते है, पंचेंद्रिय सैनीके तीनों योग होते है।
५-वेद- (कामभाव,--स्त्री वेद, पुरुष वेद, नपुंसक वेद । चार इन्द्रिय तक सबके नपुंसक वेद होता है, पंचेंद्रियोंके सबके तीनों वेद होते है । परन्तु नारकियोंके मात्र नपुंसक वेद होता है । देवोंके स्त्री व पुरुष दो ही वेद होते है।
६-कपाय-चार--क्रोध, मान, माया, लोभ । ये चारों कषाय सर्व संसारी जीवोंके नौमे गुणस्थानतक पाई जाती है। लोभ दसवें गुणस्थानतक रहता है।
७--ज्ञान-आठ-मति, श्रुत, अवधि, मन.पर्यय, केवल, कुमति, कुश्रुत, कुअवधि । सर्व मिथ्यादृष्टि जीवोंके कुमति व कुश्रुतज्ञान दो ज्ञान होते है परन्तु नारकी और देवोंके कुअवधिज्ञान भी मिथ्याष्टि अवस्थामें होता है। सम्यक्ष्टि सर्व जीवोंके मति व श्रुत दो ज्ञान होते है। ऐसे मनुष्य व तिर्यचोंके किन्हींरके अवधिज्ञान भी होता है। देव नारकी सम्यग्दृष्टियोंको भी अवधिज्ञान होता है। साधुओंके मति, श्रुत, अवधि व मनःपर्ययज्ञानतक होते है। अहंतोंके एक केवलज्ञान ही होता है।
८-संयम-सात प्रकार--असंयम, देशसंयम, सामायिक, छेदोपरथापना, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसापराय, यथाख्यातचारित्र । पहले चार गुणस्थानोंतक असंयम होता है व्रत नहीं होते है। पांचमे गुण