SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीव तत्व। [९५ १-पृथ्वीकायिक-जीव सहित पृथ्वी-जैसे खेतकी वखानकी। २-जलकाविक-जीव सहित जल-जैसे कूपका, नदीका । ३-अग्निकायिक-जीव सहित आग-जैसे अग्निकी लौ। ४-वायुकायिक-जीव सहित पवन-जैसे ठंडी समुद्रकी हवा । ५-वनस्पतिकायिक-जीवसहित वृक्ष, फूल, फल, शाखा, पत्ते आदि। इन पाच तरहके एकेन्द्रिय जीवोंके चार प्राण होने है। स्पर्शन इन्द्रिय, कायबल, आयु, श्वासोछ्वास । दो इन्द्रिय जीवसे लेकर पांच इन्द्रिय तक जीवोंको त्रम कहने हैं । त्रसोंके पांच भेद नीचे प्रकार होंगे (१) द्वेन्द्रिय जीव-जिनके स्पर्शन और रसना ऐसी दो इंद्रिया पाई जाती है । जैसे-लट, शंख, सीप, केचुआ आदि । इनके छः 'प्राण पाए जाते है। स्पर्गन इंद्रिय, रसना इंद्रिय, काय बल, वचन बल, आयु, श्वासोश्वास । शिष्य-इनके वचन बल होता है तो क्या ये शब्द करने हे? शिक्षक-जिनके बल होता है उनके शब्द करनेकी शक्ति होती है। कोई २ वोलते मालूम पडने है जैसे समुद्रके शंख व सीप । (२) तेन्द्रिय जीव-जिनके स्पर्शन, रसना, घ्राण तीन इंद्रियें होती है जैसे चींटी, खटमल, जं, विच्छू, कुंथु आदि । इनके सात प्राण होते है। तीन इन्द्रिय, काय बल, वचन बल, आयु, शासोछ्वास। (३) चौन्द्रिय जीव-जिनके स्पर्शन, रसना, प्राण, चक्षु चार
SR No.010574
Book TitleVidyarthi Jain Dharm Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherShitalprasad
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy