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________________ तत्वज्ञानका साधन। [९१ जो पहले न था सो चना ऐसा कहेंगे। यह बात हम पर्याय या अवस्थाकी अपेक्षा कहेंगे। तथा जब हम उसे द्रव्य दृष्टि से विचारेंगे तो कहेंगे कि यह पहले न था सो नहीं है किन्तु वही मिट्टी है। इसी तरह जब कोई जीव अपने पुण्य, पापके कारण देव, मनुष्य, या नारकी होता है तब द्रव्यकी दृष्टिसे वही है कितु पर्यायकी दृष्टिसे भिन्न भिन्न है । इस तरह आप एक ही समयमें किसी वस्तुमें विधि निषेध सिद्ध करसक्ते है। इसीको समझानेके लिये सप्तभंगी नय है या कहनेके सात मार्ग है । आप किसी अपेक्षासे किसी वस्तुकी सत्ता कह सकते है, यह स्यादस्ति है। विधि निषेध दोनों क्रमसे कह सकते हो यह स्यादस्तिनास्ति है। यदि दोनों अस्ति नास्तिको एक साथ एक समयमे कहना चाहो तो नहीं कह सक्ते हो यह स्यादवक्तव्य है. । इन भंगोके कहनेका मतलब यह नहीं है कि इनमें निश्चिति नहीं है या हम मात्र संभवित कल्पनाएं करते है, जैसा कुछ विद्वानोंने समझा है। इस सबका यह प्रयोजन है कि जो कुछ कहा जाता है वह किसी द्रव्य, क्षेत्र, कालादिकी अपेक्षासे सत्य है। (देखो जैनधर्मकी माहिती हीराचंद नेमचंदकृत छपी १९११ पृष्ठ ५९) (२) जर्मनीके विद्वान तत्वज्ञानी डाक्टर हर्मन जैकोबी साहब कहते है "इस स्याद्वादसे सर्व सत्य विचारोंका द्वार खुल जाता है।" (देखो जैनदर्शन गुजराती जैनपत्र भावनगर सं० १९७० पृष्ठ १३३). (३) प्रोफेसर फणिभूषण अधिकारी एम०ए० हिन्दू विश्वविद्यालय वनारस अपने ता० २६ अप्रैल १९२५के भाषणमे कहते है
SR No.010574
Book TitleVidyarthi Jain Dharm Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherShitalprasad
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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