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तत्वज्ञानका साधन।
[८७ जो क्रोधी था ही गांत है। जीवमें भी नित्य अनित्य दोनों स्वभावोंको मानना होगा तब ही वह संसारीसे सिद्ध होसकेगा । अवस्था बदलेगी परन्तु जीव वही संसारी था, वही सिद्ध होजाता है। किसी शिप्यको समझानेके लिये उसको सात तरहसे समझाएंगे
१-स्यात् नित्यं-किसी अपेक्षासे अर्थात मूल द्रव्यकी अपेक्षामे पदार्थ नित्य है।
२-स्यात् अनित्य-किसी अपेक्षासे अर्थात् अवस्थाके बदलंनकी अपेक्षासे पदार्थ अनित्य है।
३-स्यात अवक्तव्यं-किमी अपेक्षासे पदार्थ बचनसे एक साथ नहीं कहने योग्य है । पदार्थमे नित्य अनिल्य दो स्वभाव एक ही. समय हे परन्तु हम अपने मुखसे एकके पीछे दूसरा कहेंगे, एक साथ दोनोंको एक ही समय नहीं कह सक्ते, इसलिये वस्तु अवक्तव्य भी है।
तीन स्वभावोंसे सात भंग बन जाते है। जैसे हमारे पास लाल, पीला, काला रंग हो इनके भेद सात ही बनेंगे कम व अधिक नहीं। वे इस तरहपर (२) लाल (२) पीला (३) काला (४) लाल पीला (५) लाल काला (६) पीला काला (७) लाल पीला काला । इसी तरह ऊपर कहे तीन स्वभावोंके सात भंग बनेंगे। तीन तो अलग २ कह चुके हैं, चार इस प्रकार होंगे---
(४) स्यात् नित्यं अनित्यं यदि दोनों धर्मोको हम बतावें तो एसा कहेंगे कि दोनोंको कहनेकी अपेक्षासे द्रव्य नित्य भी है अनित्य भी है।
(५) स्यात् नित्यं अवक्तव्य च-किसी अपेक्षासे द्रव्य नित्य भी है अवक्तव्य भी है। यदि एक समयमें दोनों स्वभावोंको कहें