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________________ तत्वज्ञानका साधन। [८१ (२) भाविनगमनय-जो बात आगे होनेवाली है उसको वर्तमानमें होगई ऐसा संकल्प करना । जैसे-कोई दफ्तरमे उम्मेदवारी करता है, अभी नियत नहीं हुआ है तौभी यह समझकर यह अब जरूर नियत होजायगा, ऐसा कहना कि आप तो नियत होचुके हो क्यों घबड़ाते हो, ऐसा वचन इस नयने ठीक है। (३) वर्तमान नगमनय-जो बात वर्तमानमे प्रारम्भ की हो व प्रारम्भ करनेका संकल्प हो व उसका प्रबन्ध करता हो तो भी कहना कि वह होरही है, वह होगई है, सो ऐसा संकल्प इस नयसे टीक माना जाता है। जैसे कोई आदमी लकडी चीर रहा है उसके मनमे यह संकल्प है कि कुरसी बनाऊगा। उससे कोई पूछता है भाई क्या कर रहे हो तो वह कह देता है कुरसी बना रहा हूं। वास्तवमे देखा जावे तो वह लकडी काट रहा है। कुरसीका कुछ भी काम नहीं कर रहा है। परन्तु लकडी काटना कुरसीका एक प्राररिभक काम है, इसलिये यह वचन ठीक है। (२) संग्रहनय-वह नय जो एक जातिके पदार्थोको एक साथ ग्रहण करे संग्रहनय है। जैसे कहना कि यह उपवन हराभरा है। यहा उपवन शब्द बहुतसे वृक्षोको बताता है। या कहना कि जीव चेतना लक्षणधारी होता है, यहा जीवसे सर्व जीव जातिका ग्रहण हे ये दोनो बात संग्रहनयसे ठीक है। (३) व्यवहारनय-संग्रहनयसे ग्रहण किये हुए पदार्थको जो मंत करके जाने सो व्यवहारनय है। जैसे कहना कि इस उपवनमे आम, केला, नारंगी, अंगूर, अनारके वृक्ष है। या कहना जीवके दो भेद है--
SR No.010574
Book TitleVidyarthi Jain Dharm Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherShitalprasad
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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