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________________ पशुबलि सभी जानते है कि महावीर ने पगबलि का विरोध किया। परन्तु यह " विषय केवल अहिमा मे ही मम्बद्ध नहीं है। महावीर के दम विरोध के पीछे भाग्नीय जाति की चेतना के विकाम का एक अत्यन्त प्रकाशमय क्षण छपा है। हम यह नही भलना चाहिये कि मावीर के पश्नात् वैदिक धर्मावलम्बियो ने भी पगाल छोट दी। यह तभी मभव हो मकता था जब महावीर के विचागे ने केवल उनके विचारों का बण्डन न किया हो बल्कि महावीर ने म्वय उनके माथ मिलकर म ममम्या पर विचार किया हो. और उनकी चेतना को को ऐगा मार्ग माया हो जिगके प्रकाश में पावलि के पीछे छपा दर्शन फीग और बेजान लगने लगा हो। पहले नोहम जानना होगा कि पगलिया विधान क्या था। यह केवल देवताओं को प्रमन्न करने के लिये पराओं का गबन चलाने की परंपग नही थी। ऋग्वेद १०:११, के अनगार बलि देने वाला उम पग में प्रविष्ठ कर जाता है जिगकी वह बर्गल दे रहा है। यही एक बद्धिमान बलि देने वाले की परिभाषा कही गई है। उमी नग्ह ऋग्वंद १०.९. मं वर्णिन किया गया है कि विमानम्ह म्बय देवताओऔर पगाने मिलकरपुष्प की बलि दी। यह पुरुप कोई माघारण मनग्य नहीं है। ऋग्वंद के अनमार यह पृथ्वी को चागे और मेघेरे हुए है। दम पुम्प के अनिग्विन पृथ्वी पर कोई अन्य प्राणी न था। उम बलि के पश्चान् ममग्न पग और प्राणी, मूर्य और चन्द्रमा, इन्द्र, अग्नि और वाय का जन्म हुआ। ___ इस तरह वैदिक बलिदानों के पीछे मनोवैज्ञानिक नव था, वह यह कि हम म्वय अपना बलिदान कर किमी पग के माध्यम में ताकि हमाग पुनर्जन्म उमी देवना में हो जिमके आगे हम बलिदान कर रहे 73
SR No.010572
Book TitleVarddhaman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmal Kumar Jain
PublisherNirmalkumar Jain
Publication Year
Total Pages102
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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